मंहगाई की मार
आम आदमी पहले ही था बेबस और लाचार
पता नहीं और पड़ेगी कितनी मंहगाई की मार
आम आदमी पिस रहा है दो पाटों के बीच में
डेली यूज़ की चीज़ें भी अब रहीं ना उस की रीच में
असर नहीं कुछ हो रहा, हार गयी सरकार
पता नहीं और पड़ेगी कितनी मंहगाई की मार
टमाटर ला के घर में क्या हमें बनना है कंगाल
गलेगी क्या जब आएगी न घर में कोई दाल
लुट जायेंगे लगता है अब दो दिन में ही यार
पता नहीं और पड़ेगी कितनी मंहगाई की मार
दूध में पानी फिर भी मंहगा धक् धक् करता दिल
बिजली नहीं, पर बिजली का आ जाता भारी बिल
पढ़ाई का कहीं नाम नहीं, है फीसों का अम्बार
पता नहीं और पड़ेगी कितनी मंहगाई की मार
सिलेंडर गैस का आए तो फट पड़ता है सीना
पेट्रोल पम्प पर पड़ जाता है ठंडा पानी पीना
गैराज में ही शान से अब तो खड़ी है अपनी कार
पता नहीं और पड़ेगी कितनी मंहगाई की मार
मनमोहन और चिदम्बरम निकले सब के सब कसाई
सरविस टैक्स लगा कर देखो हालत क्या बनाई
दो पैसे की छूट के बदले ले लेते हैं चार
पता नहीं और पड़ेगी कितनी मंहगाई की मार